आखिर क्यों इतना महत्व रखता है महापरिनिर्वाण दिवस भारतीयों के जीवन में , आइये जानते है
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की मृत्यु ६ दिसम्बर १९५६ को दिल्ली में हुई | इसी दिन डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर को मोक्ष की प्राप्ति हुई यही वजह है कि यह दिन को इतिहास के सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया गया |
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर को श्रद्धां सुमन अर्पित करने के उद्देश्य से भारत लाखों - करोड़ो लोगो के द्वारा इस दिन को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है |महापरिनिर्वाण ’शब्द " का सम्बन्ध बौद्ध धर्म जुड़ा है जिसका तात्पर्य जीवन मरण के चक्र से मुक्ति है अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति है |जिसे बौद्ध धर्म में निर्वाण की संज्ञा दी गई है | महापरिनिर्वाण दिवस मुख्यतः डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की मृत्यु के पश्चात् अगले दिन 7 दिसम्बर 1956 को मुम्बई के चैत्यभूमि में बाबासाहब अम्बेडकर का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति अनुसार सम्पन्न किया गया |
इतना खास क्यों है महापरिनिर्वाण दिवस ?
बाबासाहब अम्बेडकर महत्वपूर्ण योगदान के एवज भारत के लाखो करोड़ो लोगो के द्वारा महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है |
इस वर्ष बाबासाहब अम्बेडकर की स्मृति में 64 वा महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जा रहा है | इस दिन मुम्बई के चैत्यभूमि पर बाबासाहब अम्बेडकर के अनुयायी एकत्रित होते है एवं उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते है |
कौन थे डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ?
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का जन्म १४ अप्रैल 1991 ई० को मध्य प्रदेश (वर्तमान ) राज्य के महू नगर में स्थित एक सैन्य छावनी में हुआ था | यह क्षेत्र उस समय अग्रेजी हुकुमत के अधिकार क्षेत्र में आता था | इसके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल तथा इसकी माता का नाम भीमाबाई था |
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर अपने माता - पिता के १४ वे संतान थे | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का जन्म एक महार परिवार में हुआ था |
या यु कहे की डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर एक महार जाति के व्यक्ति थे | इसके पिता ब्रिटिश ईष्ट इंडिया कंपनी में सूबेदार ले पद पर आसीन थे | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर दलितों व वंचितों के हो रहे अत्याचार के विरुध्द सशक्त आवाज उठाने का कार्य ही नही किया | बल्कि डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ने महिला अधिकार की वकालत करने वाले में अग्रिणी गिना जाता है |
यदि डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर को महिला अधिकार की वकालत करने वाले चैम्पियन कहा जाए तो गलत नही होगा | जिन्होंने अपना गुरु ज्योतिराव फुले को माना था | इनके मार्ग प्रज्ज्वलित करने वाले मार्ग दर्शक के रूप में बाबा साहेब ने कबीर , फुले , बुद्ध को माना है | जो इनके प्रेरणा के स्त्रोत रहे | और जनमानस के अंदर चेतना जागृत की | इससे पहले दलितों वंचितों के अधिकारों को समतामूलक समाज जी स्थापना के यही प्रेरक | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर जब केवल मात्र १५ वर्ष के थे |
उसी समय डॉ॰बाबासाहब अम्बेडकर का विवाह रमाबाई से कर दिया गया जो मात्र ९ वर्ष की कन्या थी | महार जाति में जन्म लेने केकारण डॉ॰बाबासाहब अम्बेडकर के जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा था |
या यु कहे की जातिगत भेदभाव जो वर्षो से हिन्दू धर्म में व्याप्त थी जिसने केवल डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर को ही केवल प्रभावित कर रही थी बल्कि अनेक लोगो के समाजिक व आर्थिक उत्पिड़ना का शिकार का कारण बना |
वो सकता है वही वजह हो की इनका परिवार कबीर पंथ को मानता हो | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर मूलतः मराठी मूल के निवासी थे |
बाबा साहेब की शिक्षा एवं कष्टों से भरा जीवन -
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की प्राथमिक शिक्षा सातारा शहर में स्थित गवर्मेंट हाईस्कूल वर्तमान समय में प्रतापसिंह हाईस्कूल तथा माध्यमिक शिक्षा इन्होने मुम्बई शहर में एल्फीस्टोन रोड पर स्थित गवर्मेंट हाईस्कूल
से इन्होने आगे की शिक्षा प्राप्त की |
तथा स्नातक राजनीतिक विज्ञान एवं अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एल्फीस्टन कॉलेज से प्राप्त की | इसके अलावा डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ने संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर में स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय से परास्नातक (विषय - अर्थशास्त्र , इतिहास , समाजशात्र ,मानवशास्त्र ,दर्शनशात्र ) शिक्षा प्राप्त की | क्योकि डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की आर्थिक स्थितीय सही नही थी |लिहाजन इनकी शिक्षा दीक्षा बिना छात्रवृति के संभव नही था|इसलिए डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर को अपनी शिक्षा के लिए सयाजीराव गायकवाड़ की छात्रवृति पर निर्भर रहना पड़ता था | जिसकी रकम 25 रूपये प्रति माह दिए जाते थी | लन्दन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ८ मार्च १९२७ ई ० डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की |
- शिक्षित बने, संघटित रहे और संघर्ष करे
दूसरा विवाह -
१९३५ ई० में इनकी पति रमाबाई की मृत्यु बीमारी के कारण हो गई |१९४८ में डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ने शारदा कबीर ( बाद के वर्षो में यही सविता के नाम से जानी गई )के विवाह कर किया जो एक ब्राहमण महिला एवं डॉ ० थी |
पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना चाहिए।
दलित अधिकार के मांग करते रहे बाबा साहेब -
_______________________________________________
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का मानना था की दलितों एवं जनजाति के लिए एक अलग निर्वाचन पध्दति अपनानी चाहिए |
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का मानना था की दलितों एवं जनजाति के लिए आरक्षण प्रावधान होना चाहिए ताकि वह भी समाज की मुख्य धारा में आ सके |
मनुस्मृति की प्रति जलायी १९२७ क्योकि इसके कई मान्यताए ,पद , एवं पाठ हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरूतियो को वैधानिक जामा पहनाने का कार्य कर रहा थे | या यु कहे की जातिगत भेदभाव को बढ़ावा दे रहा था |
पूना पैक्ट जिसे सम्प्रदायिक पंचाट के नाम से भी जाना जाता है | पैक्ट अथवा समझौता डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर एवं कांग्रेस के अन्य सदस्यों के बीच हुआ जिसमे यह तय किया गया की दलित को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया |किन्तु डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ऐसा नही चाहते थे उन्होंने गोलमेज सम्मेलन में दलित एवं वचित लोगो के राजनैतिक प्रतिनिधित्व के समर्थक था | डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर की पुन पैक्ट के तहत यह शर्त रखी गई थी की दलितों को दो वोट देने का अधिकार होना चाहिए एक वोट का वह प्रयोग दलित प्रतिनिधि को चुनने में करेगा तथा दुसरे वोट से समान्य वर्ग के प्रतिनिधि का चुनाव करेगा | इस एक्ट की मूल बाते यह थी दलित का चुनन दलित ही करेग अ उसको चुनने का अधिकार अन्य समान्य वर्ग को नही होगा |
१९३७ ई० कोकणी में चली आ रही पट्टेदारी व्यवस्था के विरुद्ध विधेयक का पास कराया |
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का मानना पढिए , आगे बढिए , संगठित होइए | शिक्षा वह जिससे आप अपने अधिकारों को जानते है इसलिए पढ़िए |
- हम सबसे पहले और अंत में भी भारतीय है.
राजनीतिक जीवन का सफर काफी उतार चढ़ाव का रहा -
________________________________________________
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर ने १९३६ एक स्वतत्र मजदूर पार्टी का गठन किया |
- कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
भारतीय समाज में व्याप्त असमानत को दूर करने के उपाय -
बाबा साहेब का मानना था की समाज में व्याप्त असमानत को चार तरह से दूर किया जा सकता है -
राजनितिक प्रतिधिनित्व के माध्यम से - बाबा साहेब का मानना था की शासन व्यवस्था में समाज के विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियो का प्रतिनिधित्व होना चाहिए और यह प्रतिनिधित्व सरकार पर नियंत्रण स्थापित करने का कार्य करेगा | बाबा साहेब का मानना था की समाज के अल्प संख्यक लोगो का प्रतिनिधित्व जब वह स्वयम रखे | क्योकि वह उस समाज की खामियों एवं समस्याओ को भली भाति जानते होगे | एक बात जो बाबा साहेब ने स्पष्ट की थी वह यह है की मुद्दे को रखा जाना से ज्यादा मायने यह रखता है की उस मुद्दे को कौन उठा रहा है |
सहकारी खेती के समर्थक - भारत के कृषि प्रधान देश है | जहाँ आजीवका का मुख्य स्तरों के रूप में कृषि को माना जाता है | आजादी के पूर्व भारत में जमीन का मालिकाना हक उच्च जाति के लोगो का था तथा जमीदारो का था | ज्यादातर आबादी अपनी जीविका के लिए इन जमीदारो के खोतो में काम किया करती था या यु कहे की समाज का बहुत बड़ा तबका भूमिहीन था | आजादी के बाद के समय देश में भूमि सुधर की व्यवस्था की निति लागु करनी थी तथा सहकारी खेती को बढ़ावा देना था किन्तु यह आज तक लागु नही हो सका |
सेपरेट सेटलमेंट - भारत में आजादी के पूर्व जजमानी व्यस्था प्रचलित थी जिसमे एक जाति दुसरे जाति पर निर्भर रहती थी | कही न कही यह निर्भरता उच्च जाति का निम्न जाति के शोषण का आधार बन रही थी जिस पर रोक लगाने के लिए बाबासाहेब सेपरेट सेटलमेंट की व्यवस्था की बात कहते है |
पे बैक टू सोसाइटी - बाबासाहेब का मानना था कि समाज में जिन व्यक्तियों की स्थिति अच्छी है इन्हें समाज में कमजोर लोगो की मदद करनी चाहिए ताकि उनकी समाज के निचले तबके को समाज की मुख्य शाखा से जोड़ा जा सके | यहाँ एक बात ध्यान देने योग है की बाबा साहेब ने आर्थिक सहयोग अथवा मदद की बात कही है |
मृत्यु के अंतिम समय तक लिखना नही भूले बाबा साहेब -
- जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं।
No comments:
Post a comment